14 सितंबर 2019

गाँव में यादों के

नज़र को आस नज़र की है मयकशी के लिए
तड़प रहे हैं बहुत आज हम किसी के लिए

ये ग़म हयात के न जाने ख़त्म कब होंगे
मुंतज़िर है ये दिल इक लम्हें की खुशी के लिए

नहीं लगता है ये मुमकिन मुझे सफ़र तन्हा
हमसफ़र चाहिए मुझको भी ज़िन्दगी के लिए

गाँव में यादों के छाई है जो सावन की घटा
बरस ही जाए तो अच्छा है तिश्नगी के लिए

धूप रख के भी अंधेरों से वफ़ा की हमने
आज दिल भी जलाएंगे रोशनी के लिए

ढलें तो आँख से आंसू मगर ग़ज़ल की तरह
उम्र नदीश की गुजरे तो शायरी के लिए



11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 15 सितम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. धूप रख के भी अंधेरों से वफ़ा की हमने
    आज दिल भी जलाएंगे रोशनी के लिए.....बढ़िया !

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  3. बहुत खूब ... बादल बरस जाएँ तो तिश्नगी बुझे ... गज़ब का ख्याल है ...
    लाजवाब ग़ज़ल ...

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  4. .. वाह बहुत खूबसूरत गजल लिखी है आपने लोकेश जी

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