चुन लिया जबसे ठिकाना दिल का।
खूब मौसम है सुहाना दिल का।।
सांस लेना भी हो गया मुश्किल
खेल समझे थे लगाना दिल का।।
कैसे करते न नाम पर तेरे
मुस्कुराहट है या बयाना दिल का।।
थक गई है उनींदे रस्तों से
नींद को दे दो न शाना दिल का।।
भूल जाओ 'नदीश' अब ख़ुद को
इश्क़ है, रोग पुराना दिल का।।
बहुत खूब आदरणीय नदीम जी। कुछ पल के ठहराव में दिल का दिलकश ठिकाना... मुबारक हो
जवाब देंहटाएंबहुत बार आभार
हटाएंबहुत ही सुन्दर..।
जवाब देंहटाएंलाजवाब गजल...
थक गई है उनींदे रस्तों से
नींद को दे दो न शाना दिल का।।
वाह!!!
बहुत बहुत आभार
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार आपका
हटाएंवाह......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब आदरणीय
बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंलाजवाब और बेहतरीन भावों को प्रदर्शित करती उम्दा गज़ल ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" l में लिंक की गई है। https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/04/116.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय
हटाएंइश्क है रोग पुराना दिल का ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब शेर है आदरणीय ... और सभी शेर भी कमाल के ... बहुत बधाई ...
वाह बहुत खूबसूरत गजल लोकेश जी हर बार की तरह ।
जवाब देंहटाएंValentines Day Gift
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