चला शहर को तो वो गांव बेच आया है
अजब मुसाफ़िर है जो पांव बेच आया है
मकां बना लिया माँ-बाप से अलग उसने
शजर ख़रीद लिया छांव बेच आया है
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जो मेरा था तलाश हो गया
हाँ यक़ीन था काश हो गया
मेरी आँखों में चहकता था
परिंदा ख़्वाबों का लाश हो गया
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किनारों से बहुत रूठा हुआ है
कलेजा नाव का सहमा हुआ है
पटकती सर है, ये बेचैन लहरें
समंदर दर्द में डूबा हुआ है
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बहुत लाजवाब मुक्तक ...
जवाब देंहटाएंदिल से दाद क़ुबूल करें ... लाजवाब ...
बहुत बढ़िया मुक्तक, लोकेश जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंलाजवाब बस लाजवाब।
जवाब देंहटाएंमेरी आँखों में चहकता था
परिंदा ख़्वाबों का लाश हो गया।
अप्रतिम।
लाजवाब मुक्तक ।
जवाब देंहटाएंवाहह्हह.. वाहह्हह.. शानदार.. हृदयस्पर्शी सृजन लोकेश जी👍👍
जवाब देंहटाएंकिनारों से बहुत रूठा हुआ है
जवाब देंहटाएंकलेजा नाव का सहमा हुआ है
पटकती सर है, ये बेचैन लहरें
समंदर दर्द में डूबा हुआ है
आदरणीय लोकेश जी -- आपकी नर्म मुलायन शायरी के लिए एक ही शब्द है -- वाह !!!! शुभकामनायें स्वीकार हों आदरणीय कविवर |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर
Valentines Day Gift
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