जब भी यादों में सितमगर की उतर जाते हैं
काफ़िले दर्द के इस दिल से गुज़र जाते हैं
तुम्हारे नाम की हर शै है अमानत मेरी
अश्क़ पलकों में ही आकर के ठहर जाते हैं
किसी भी काम के नहीं ये आईने अब तो
अक्स आँखों में देखकर ही संवर जाते हैं
इस कदर तंग है तन्हाईयाँ भी यादों से
रास्ते भीड़ के तनहा मुझे कर जाते हैं
देखकर तीरगी बस्ती में उम्मीदों की मिरे
अश्क़ ये टूटकर जुगनू से बिखर जाते हैं
बसा लिया है दिल में दर्द को धड़कन की तरह
ज़ख्म, ये वक़्त गुजरता है तो भर जाते हैं
खिज़ां को क्या कभी ये अफ़सोस हुआ होगा
उसके आने से ये पत्ते क्यों झर जाते हैं
बुझा के रहते हैं दिये जो उम्मीदों के नदीश
रह-ए-हयात में होते हुए मर जाते हैं
बहुत ख़ूब ... khizan को कहाँ ये अहसास होता है ... पत्तों पे गुज़रती है ...
जवाब देंहटाएंहर शेर लाजवाब ग़ज़ल का ...
हर शेर बेहद उम्दा है..लाज़वाब गज़ल
जवाब देंहटाएंलोकेश जी...वाह्ह्ह...👌👌
बहुत बहुत आभार
हटाएंलोकेश जी आपकी शेर ओ शायरी और गजल नज्म का कोई जवाब नही
जवाब देंहटाएंबेमिसाल।
बेहद शुक्रिया
हटाएंआदरणीय लोकेश जी -- आपके शेर ताजगी भरे और बेहद उम्दा होते हैं |जब भी
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर आई हूँ कुछ ना कुछ नया अप्रितम मिलता है | सहज ही मन को छु लेते हैं सब अशार
दर्द के अहसासात को मुखर करते शब्द बेमिसाल है ------------
देखकर तीरगी बस्ती में उम्मीदों की मिरे
अश्क़ ये टूटकर जुगनू से बिखर जाते हैं
बसा लिया है दिल में दर्द को धड़कन की तरह
ज़ख्म, ये वक़्त गुजरता है तो भर जाते हैं------
अति सुंदर !!!!!!!!!!!!!! सादर -
बहुत बहुत आभार आदरणीया
हटाएंतुम्हारे नाम की हर शै है अमानत मेरी
जवाब देंहटाएंअश्क़ पलकों में ही आकर के ठहर जाते हैं बहुत उम्दा गजल
हार्दिक आभार
हटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल . हर शेर अपने आप में लाजवाब ।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 27 सितम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1168 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
बहुत बहुत आभार आदरणीय
हटाएंवाह ! क्या कहने है ! एक से बढ़कर एक शेर ! लाजवाब ! बहुत खूब आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
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जवाब देंहटाएंबसा लिया है दिल में दर्द को धड़कन की तरह
ज़ख्म, ये वक़्त गुजरता है तो भर जाते हैं
एक से बढकर एक शेर....
लाजवाब गजल
वाह!!!
हार्दिक आभार आपका
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