जलते हैं दिल के ज़ख्म ये पाके दवा की आँच
होंठों को है जलाती मेरे अब दुआ की आँच
अश्क़ों के शरारे* समेट कर तमाम रोज
ख़्वाबों को जगाये है मेरे क्यूं मिज़ा* की आंच
सोचा था ख्यालों से मिलेगा तेरे सुकून
लेकर गयी क़रार ये राहत-फ़ज़ा* की आँच
सौदागरी* नहीं है, ये है ज़िन्दगी मेरी
रखिये अलग ही इससे नुक्सानो-नफ़ा की आँच
महफूज़ कहाँ रक्खूँ ये जज़्बात दिल के मैं
लगती है हर तरफ ही यहाँ तो ज़फ़ा की आँच
दरिया ये कोई आग का आई है करके पार
पिघला रही है मुझको ये ठंडी हवा की आँच
क्या हो गया है अब तेरे वादों की धूप को
इसमें बची नहीं है ज़रा भी वफ़ा की आँच
लेके नदीश अपने साथ बर्फ़-ए-दर्द चल
झुलसा ही दे न तुझको ये तेरी अना की आँच
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शरारे- अंगार
मिज़ा- पलक
राहत-फ़ज़ा- सुकून का माहौल
सौदाग़री- व्यापार
अना- अहंकार
दरिया ये कोई आग का आई है करके पार
जवाब देंहटाएंपिघला रही है मुझको ये ठंडी हवा की आँच
वाह लोकेश जी.....
आभारआदरणीय
हटाएंअद्भुत
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया
हटाएंशब्दों का चयन आपसे सीखना पडेगा, हर शब्द बहुत कुछ अभिव्यक्त कर रहा है। बेहतरीन गजल लोकेश जी।
जवाब देंहटाएंलाजवाब ...👌👌👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंदरिया ये कोई आग का आई है करके पार
जवाब देंहटाएंपिघला रही है मुझको ये ठंडी हवा की आँच
अप्रतिम....,
हार्दिक आभार आपका
हटाएंहार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह फिर एक लाजवाब प्रसतुति ।
जवाब देंहटाएंउम्दा बेहतरीन।
हार्दिक आभार आपका
हटाएंक्या बात है, अति उत्तम।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
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