खोया है कितना, कितना हासिल रहा है वो
अब सोचता हूँ कितना मुश्किल रहा है वो
जिसने अता किये हैं ग़म ज़िन्दगी के मुझको
खुशियों में मेरी हरदम शामिल रहा है वो
क्या फैसला करेगा निर्दोष के वो हक़ में
मुंसिफ बना है मेरा कातिल रहा है वो
पहुँचेगा हकीकत तक दीदार कब सनम का
सपनों के मुसाफिर की मंज़िल रहा है वो
कैसे यक़ीन उसको हो दिल के टूटने का
शीशे की तिज़ारत में शामिल रहा है वो
तूफां में घिर गया हूँ मैं दूर होके उससे
कश्ती का ज़िन्दगी की साहिल रहा है वो
ता उम्र समझता था जिसको नदीश अपना
गैरों की तरह आकर ही मिल रहा है वो
मुंसिफ़- न्याय करने वाला
तिज़ारत- व्यापार
खोया है कितना .... वाह बहुत ही उम्दा
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया
हटाएंता उम्र समझता था जिसको नदीश अपना
जवाब देंहटाएंगैरों की तरह आकर ही मिल रहा वो.....
बेहतरीन ।।। कातिल ही मुंसिफ...👆👌👌
आभार आदरणीय
हटाएंउम्दा गजल लोकेश जी।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरती से पेश की है आपने।
शुभ संध्या।
आभार आदरणीया
हटाएंवाह वाह वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल लोकेश जी।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंजबरदस्त... वाहहह बेहद खूबसूरत लाज़वाब ग़ज़ल लोकेश जी। हर.शेर शानदार।👌👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंबेहद खूबसूरत गजल
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंजिसने अता किये हैं ग़म ज़िन्दगी के मुझको
जवाब देंहटाएंखुशियों में मेरी हरदम शामिल रहा है वो
....
खूब
हार्दिक आभार
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