04 नवंबर 2017

निचोड़ के मेरी पलक को


अपने होने के हर एक सच से मुकरना है अभी
ज़िन्दगी है तो कई रंग से मरना है अभी

तेरे आने से सुकूं मिल तो गया है लेकिन
सामने बैठ ज़रा मुझको संवरना है अभी

ज़ख्म छेड़ेंगे मेरे बारहा पुर्सिश वाले
ज़ख्म की हद से अधिक दर्द उभरना है अभी

निचोड़ के मेरी पलक को दर्द कहता है
मकीन-ए-दिल हूँ मैं और दिल में उतरना है अभी

आज उसने किया है फिर से वफ़ा का वादा
इम्तिहानों से मुझे और गुजरना है अभी

बाद मुद्दत के मिले तुम तो मुझे याद आया 
ज़ख्म ऐसे हैं कई जिनको कि भरना है अभी

हुआ है ख़त्म जहाँ पे सफ़र नदीश तेरा 
वो गाँव दर्द का है और ठहरना है अभी

बारहा- बार-बार
पुर्सिश- हालचाल जानना
मकीन-ए-दिल- दिल का निवासी


21 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत ही उम्दा ग़ज़ल .....

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  2. अपने होने के हर एक सच से मुकरना है अभी
    ज़िन्दगी है तो कई रंग से मरना है अभी....
    दर्द के अहसास से सराबोर !

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  3. निचोड़ के मेरी पलक को दर्द कहता है
    मकीन-ए-दिल हूँ मैं और दिल में उतरना है अभी

    लाजवाब गजल नदीश जी👌👌👌

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  4. बहुत उम्दा लोकेश जी,
    आपकी हर गजल गहरी और भाव लिये होती है ।
    बेहतरीन।

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  5. ज़िन्दगी के कई इम्तिहान ऐसे होते हैं...
    लाजवाब ग़ज़ल ...

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