दूर हमने यूँ तीरगी कर ली
जला के दिल को रौशनी कर ली
जला के दिल को रौशनी कर ली
दोस्ती है फ़रेब जान के ये
जो मिला उससे दुश्मनी कर ली
ज़िन्दगी कैसे रहबरी करती
मौत ने मेरी रहज़नी कर ली
इसलिए हो गए खफ़ा आंसू
सिर्फ उम्मीद-ए-ख़ुशी कर ली
गिर गए आईने की आँखों से
अक्स ने जैसे ख़ुदकुशी कर ली
रूठ के जाना किसी का ऐ नदीश
रूह ने जैसे बेरुख़ी कर ली
बहुत ही सुंदर है गज़ल ।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया
हटाएंवाह !! क्या खूब लिखा ?
जवाब देंहटाएंगिर गए आईने की आँखों से
अक्स ने जैसे ख़ुदकुशी कर ली-- अति सुंदर !!!!! आखिरी शेर भी कबिलेदाद है आदरणीय लोकेश जी |
आभार आदरणीया
हटाएंवाह्ह...शानदार..लाज़वाब गज़ल लोकेश जी👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत ख़ूब ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब शेर हैं ग़ज़ल में ...
बहुत बहुत आभार
हटाएंआदरणीय लोकेश जी ------- हमेशा की तरह खूबसूरत अशार!!!!!!!!!!ये शेर मुझे खास काबिले दाद लगा -
जवाब देंहटाएंदोस्ती है फ़रेब जान के ये
जो मिला उससे दुश्मनी कर ली------------ सादर आभार |
बहुत बहुत आभार
हटाएंJabardast.......Shandaar gazal
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
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