पोशीदा बातों को सुर्खियां बनाते हैं
लोग कैसी-कैसी ये कहानियां बनाते हैं
जिनमें मेरे ख़्वाबों का नूर जगमगाता है
वो मेरे आंसू इक कहकशां बनाते हैं
फासला नहीं रक्खा जब बनाने वाले ने
क्यों ये दूरियां फिर हम दरम्यां बनाते हैं
फूल उनकी बातों से किस तरह झरे बोलो
जो सहन में कांटों से गुलसितां बनाते हैं
.
जब नदीश जलाती है धूप इस ज़माने की
हम तुम्हारी यादों से सायबां बनाते हैं
पोशीदा- छिपी हुई
सायबां- छांव
कहकशां- ब्रह्माण्ड, गैलेक्सी
वाह !
जवाब देंहटाएंअति उत्तम !
कमाल का लिखते हैं आप लोकेश जी।
बधाई एवं शुभकामनाऐं।
वाह्ह्ह.....लाज़वाब गज़ल लोकेश जी।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर👌
शुक्रिया श्वेता जी
हटाएंफासला नहीं रक्खा जब बनाने वाले ने
जवाब देंहटाएंक्यों ये दूरियां फिर हम दरम्यां बनाते हैं
बेहद खूबसूरत !
बहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंआदरणीय लोकेश जी बहुत उम्दा शेरों से सजी रचना !!!!!! सादर --
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंबहुत ही ख़ूबसूरत शेर हैं इस ग़ज़ल के ।।।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंबहुत ही सुंदर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंजिनमें मेरे ख़्वाबों का नूर जगमगाता है
जवाब देंहटाएंवो मेरे आंसू इक कहकशां बनाते हैं!!!!!!!!
बहुत सुंदर आदरनीय लोकेश जी | मन के अत्यंत कोमल भावों को बड़ी मार्मिकता से प्रस्तुत करने में आपका कोई जवाब नहीं | मेरी हार्दिक शुभकामनायें और बधाई स्वीकार हो | सादर --
बहुत बहुत आभार
हटाएंमज़ा आ गया फिर से आपकी खूबसूरत ग़ज़ल पढ़ के ....
जवाब देंहटाएंभावनाओं का सैलाब शब्द बन गए ...
बहुत बहुत आभार
हटाएंकमाल की गजल...एक से बढकर एक शेर...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत बहुत आभार
हटाएंखूबसूरत
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