प्यार हमने किया जिंदगी की तरह
आप हरदम मिले अजनबी की तरह
मैं भी इन्सां हूँ, इन्सान हैं आप भी
फिर क्यों मिलते नहीं आदमी की तरह
मेरे सीने में भी इक धड़कता है दिल
प्यार यूँ न करें दिल्लगी की तरह
दोस्त बन के निभाई है जिनसे वफ़ा
दोस्ती कर रहे हैं दुश्मनी की तरह
हमको कोई गिला ग़म से होता नहीं
ग़र ख़ुशी कोई मिलती ख़ुशी की तरह
आज फिर से मेरे दिल ने पाया सुकूं
सोचकर आपको शायरी की तरह
ग़म की राहों में जब भी अँधेरे बढ़े
अश्क़ बिखरे सदा चांदनी की तरह
काश दिल को तुम्हारे ये आता समझ
इश्क़ मेरा नहीं हर किसी की तरह
याद आई है जब भी तुम्हारी नदीश
तीरगी में हुई रौशनी की तरह
वाह्ह्ह...बहुत खूब,लाज़वाब गज़ल लोकेश जी।अनकहे जज़्बातों को लफ़्ज़ दे दिया ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया श्वेता जी
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया
हटाएंबेहतरीन गजल।
जवाब देंहटाएंनिरंतर प्रवाह के साथ।
आभार आदरणीया
हटाएंवाह्ह्ह !बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया
हटाएंबेहतरीन..
जवाब देंहटाएंबेहद आभार
हटाएंबहुत ख़ूब ...
जवाब देंहटाएंइंसान है तो मिलें इंसान जैसे ही ...
लाजवाब शेर हैं ग़ज़ल के ...
बेहद शुक्रिया
हटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया
हटाएंबेहद आभार
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबेहद आभार
हटाएंमैं भी इन्सां हूँ, इन्सान हैं आप भी
जवाब देंहटाएंफिर क्यों मिलते नहीं आदमी की तरह
बेहतरीन रचना
बहुत बहुत आभार आपका
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब गजल...
बहुत बहुत आभार आपका
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