यहां पर भी हूँ मैं, मैं ही वहां हूँ
ठिकाना है बदन, मैं लामकां हूँ
हमारा साथ है कुछ इस तरह से
तड़प और दर्द तू है, मैं फुगां हूँ
हुई है ग़म से निस्बत जब से मेरी
है सच, न ग़मज़दा हूँ न शादमां हूँ
मुझे पढ़ लो मुझे महसूस कर लो
मैं अपनी नज़्मों-ग़ज़लों में निहां हूँ
न है उन्वान, न ही हाशिया है
मुझे सुन लो सरापा दास्तां हूँ
नदीश आओ ज़माना मुझमें देखो
मैं नस्ल-ए-नौ की मंज़िल का निशां हूँ