16 दिसंबर 2022

खुशी का ख्वाब भी


कभी देखा नहीं तुमने कि ज़ख़्मों से भरा हूँ मैं
फ़क़त जीने को इक पल के लिये हर पल मरा हूँ मैं

नज़रअंदाज़ मुझको इस तरह से दिल ये करता है
कि जैसे अपने भीतर शख़्स कोई दूसरा हूँ मैं

ख़ुशी का ख़्वाब भी कोई कभी आता नहीं मुझको
कसौटी पे तेरी ऐ ग़म बता कितना खरा हूँ मैं

ख़लल पड़ जाए न ख़्वाबों में तेरे नींद से मेरी
ख़यालों की किसी आहट से भी कितना डरा हूँ मैं

खिज़ां कहती है मुझसे ये बहारें अब न आएंगी
उम्मीदे वस्ल, वजह से तेरी अब भी हरा हूँ मैं

रखा जब सामने उनके ये दिल तो हँस दिये खुलकर
बता मुझको 'नदीश' अब तू ही ये, क्या मसखरा हूँ मैं

#लोकेशनदीश

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कृति ।

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  2. ख़ुशी का ख़्वाब भी कोई कभी आता नहीं मुझको
    कसौटी पे तेरी ऐ ग़म बता कितना खरा हूँ मैं
    वाह!!!!
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण।

    जवाब देंहटाएं