08 दिसंबर 2019

दूर मुझसे न रहो तुम

दूर मुझसे न रहो तुम यूँ बेखबर बन कर
क़रीब आओ चलो साथ हमसफ़र बन कर

जहाँ भी देखता हूँ, बस तुम्हारा चेहरा है
बसी हो आँख में तुम ही मेरी नज़र बन कर

सफ़र में तेज हुई धूप ग़मों की जब भी
तुम्हारी याद ने साया किया शजर* बन कर

महक रही है हरेक सांस में ख़ुश्बू तेरी
मेरे वज़ूद में तू है दिलो-जिगर बन कर

शब-ए-हयात* में उल्फ़त* की रोशनी लेकर
चले भी आओ ज़िन्दगी में तुम सहर बन कर

तुम्हारे नाम पर कर दे, ये ज़िन्दगी भी नदीश
रहो ता-उम्र मेरे यूँ ही तुम अगर बन कर

शजर- पेड़
शब-ए-हयात- जीवन की रात
उल्फ़त- प्रेम

14 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी रचना के चयन के लिए बहुत बहुत आभार आपका

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