बिखरी शाम सिसकता मौसम
बेकल, बेबस, तन्हा मौसम
तन्हाई को समझ रहा है
लेकर चाँद खिसकता मौसम
शब के आंसू चुनने आया
लेकर धूप सुनहरा मौसम
चाँद, चौदहवीं का हो छत पर
फिर देखो मचलता मौसम
ज़ुल्फ़ चाँदनी की बिखरा कर
बनकर रात महकता मौसम
खिलती कलियों की संगत में
फूलों सा ये खिलता मौसम
तेरी यादों की बूंदों से
ठंडा हुआ, दहकता मौसम
धूप-छाँव बनकर नदीश की
ग़ज़लों में है ढलता मौसम
तेरी यादों की बूंदों से
जवाब देंहटाएंठंडा हुआ, दहकता मौसम
धूप-छाँव बनकर नदीश की
ग़ज़लों में है ढलता मौसम
बहुत खूब...., अत्यन्त सुन्दर ।
बेहद शुक्रिया आपका
हटाएं
जवाब देंहटाएं"तेरी यादों की बूंदों से
ठंडा हुआ, दहकता मौसम"
बहुत खूब
बहुत बहुत शुक्रिया सर
हटाएंज़ुल्फ़ चाँदनी की बिखरा कर
जवाब देंहटाएंबनकर रात महकता मौसम
वाह, लोकेश जी , हमेशा की तरह लाजवाब 👌👌👌
बेहद आभार आपका
हटाएंवाह बहुत ही बेहतरीन 👌👌
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया आपका
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-12-2019) को "शब्दों का मोल" (चर्चा अंक-3562) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता लागुरी 'अनु '
बेहद शुक्रिया अनिता जी
हटाएंलाजवाब लोकेश जी बहुत ही प्यारी रचना।
जवाब देंहटाएं