न जाने हाथ में कैसे हसीं खज़ाने लगे
खिज़ां के रोजो-शब भी आजकल सुहाने लगे
तेरी यादों की दुल्हन सज गई है यूँ दिल में
किसी बारात में खुशियों के शामियाने लगे
वफ़ा के ज़िक्र पे अंदाज़ ये रहा उनका
झुका के आँख वो पलकों से मुस्कुराने लगे
मुझे जो कहते थे कि तुम हो मेरे दिल का सुकूं
जो वक़्त बदला तो वो ही मुझे भुलाने लगे
थमी जो बारिशें अश्क़ों की ऐ नदीश कभी
परिन्दे ख़्वाब के आँखों में घर बसाने लगे
बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंसच्चे शेर ... बहुत ही लाजवाब ... दिली दाद मेरी ...
बहुत बहुत आभार आपका
हटाएंबहुत खूब ! बेहतरीन व लाजवाब सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
हटाएंमेरी रचना के चयन के लिए बहुत बहुत आभार आपका
जवाब देंहटाएंमुझे जो कहते थे कि तुम हो मेरे दिल का सुकूं
जवाब देंहटाएंजो वक़्त बदला तो वो ही मुझे भुलाने लगे
थमी जो बारिशें अश्क़ों की ऐ नदीश कभी
परिन्दे ख़्वाब के आँखों में घर बसाने लगे
वाह !लोकेश जी , हमेशा की तरह सभी अशार अपनी जगह शानदार | मेरी शुभकामनायें और बधाई इस भावपूर्ण लेखन के लिए |
बहुत बहुत आभार आपका
हटाएंबहुत खूब...... ,लाजबाब गजल ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
हटाएं
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना ....... ,.....4 दिसंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मेरी रचना के चयन के लिए बहुत बहुत आभार
हटाएंवफ़ा के ज़िक्र पे अंदाज़ ये रहा उनका
जवाब देंहटाएंझुका के आँख वो पलकों से मुस्कुराने लगे
वाह!!!!
एक से बढ़कर एक शेर
बहुत ही लाजवाब गजल
बहुत बहुत आभार
हटाएंबेहद खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबेहद उम्दा खूबसूरत ग़ज़ल ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
हटाएंबहुत सुन्दर सर
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार आपका
हटाएंमेरी रचना के चयन के लिए बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आ0
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