मुझको मिले हैं ज़ख्म जो बेहिस जहान से
फ़ुरसत में आज गिन रहा हूँ इत्मिनान से
आँगन तेरी आँखों का न हो जाये कहीं तर
डरता हूँ इसलिए मैं वफ़ा के बयान से
साहिल पे कुछ भी न था तेरी याद के सिवा
दरिया भी थम चुका था अश्क़ का उफ़ान से
नज़रों से मेरी नज़रें मिलाता है हर घड़ी
इकरार-ए-इश्क़ पर नहीं करता ज़ुबान से
कटती है ज़िन्दगी नदीश की कुछ इस तरह
हर लम्हां गुज़रता है नये इम्तिहान से
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-08-2019) को "बप्पा इस बार" (चर्चा अंक- 3447) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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श्री गणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आदरणीय
हटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीया
हटाएंमुझको मिले हैं ज़ख्म जो बेहिस जहान से
जवाब देंहटाएंफ़ुरसत में आज गिन रहा हूँ इत्मिनान से
लाजवाब गजल हमेशा की तरह....
वाह!!!!
बहुत बहुत आभार आदरणीया
हटाएंकटती है जिन्दगी नदिश की कुछ इस तरह
जवाब देंहटाएंहर लम्हा गुजरता है नए इम्तिहान से
सुन्दर सृजन
दर्द भी मुझे प्यारे हैं क्योंकि वो ही तो हर पल साथ हमारे हैं ,
बहुत बहुत आभार आपका
हटाएंज़िन्दगी एक इम्तिहान ही तो है ...
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब शेर और दिलकश ग़ज़ल ...
बहुत बहुत आभार आदरणीय
हटाएंहर लम्हां गुज़रता है नये इम्तिहान से....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
बहुत बहुत आभार आदरणीया
हटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीया
जवाब देंहटाएंमुझको मिले हैं ज़ख्म जो बेहिस जहान से
जवाब देंहटाएंफ़ुरसत में आज गिन रहा हूँ इत्मिनान से......बहुत ख़ूब !
बहुत बहुत आभार आदरणीया
हटाएंThanks for sharing ! Send Valentines Day Gifts Delivery
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