तुम बिन बहार का मौसम उदास है।
आकर तो देखो ये आलम उदास है।।
खिलने से पहले ही मसले हैं गुंचे
मंज़र ये देखकर शबनम उदास है।।
आराम आये भी तो कैसे आये
ज़ख्मों की शिद्दत से मरहम उदास है।।
बीमारे-उल्फ़त हैं कितने न पूछो
कोई ज़ियादा कोई कम उदास है।।
आके किसी रोज देखो नदीश को
जब से गये हो तुम हरदम उदास है।।
तुम बिन बहार का मौसम उदास है।
जवाब देंहटाएंआकर तो देखो ये आलम उदास है।।
बहुत खूबसूरत......, लाजवाब सृजन ।
हार्दिक आभार
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब...
हार्दिक आभार
हटाएंबेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंवाह !! बहुत ख़ूब 👌👌👌
जवाब देंहटाएंसादर
हार्दिक आभार
हटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीया
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबीमारे-उल्फ़त हैं कितने न पूछो
जवाब देंहटाएंकोई ज़ियादा कोई कम उदास है।।
बहुत खूब ..............
आभार आदरणीया
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जवाब देंहटाएंआराम आये भी तो कैसे आये
ज़ख्मों की शिद्दत से मरहम उदास है
अन्तस् की मखमली . महीन अनुभूतियों को बहुत ही कोमलता से उकेरती रचना बहुत प्यारी है आदरणीय लोकेश जी | आपके लेखन की मौलिक शैली को संजोये ये रचना आपकी एनी रचनाओं की तरह वाह और सिर्फ वाहकी हक़दार है | हार्दिक शुभकामनायें और बधाई |
आभार आदरणीया
हटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना .
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंमकते का शेर तो लाजवाब है ...
हर शेरर खूबसूरत है इस ग़ज़ल का ...
भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
आभार आदरणीय
हटाएंवाह क्या बात है
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया
हटाएंवाह !बहुत सुन्दर आदरणीय
जवाब देंहटाएंसादर
आभार आदरणीया
हटाएंहर शेर लाजवाब ... नया अंदाज़ लिए है ...
जवाब देंहटाएंदमदार ग़ज़ल ... मुबारक कबूल करें ...
आभार आदरणीय
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