व्याकुल हो जब भी मन मेरा
तब-तब गीत नया गाता है
आँखों में इक सपन सलोना
चुपके-चुपके आ जाता है
जीवन के सारे रंगों से
भीग रहा है मेरा कण-कण
मुझे कसौटी पर रखकर ये
समय परखता है क्यूँ क्षण-क्षण
गड़ता है जो भी आँखों में
समय वही क्यों दिखलाता है
जाने किस पल हुआ पराया
वो भी तो मेरा अपना था
रिश्ता था कच्चे धागों का
मगर टूटना इक सदमा था
घातों से चोटिल मेरा मन
आज बहुत ही घबराता है
जोड़-जोड़ के तिनका-तिनका
नन्हीं चिड़िया नीड़ बनती
मिलकर बेबस-बेकस चीटी
इक ताकतवर भीड़ बनती
छोटी-छोटी खुशियाँ जी लो
यही तो जीवन कहलाता है
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंजीवन के सारे रंगों से
जवाब देंहटाएंभीग रहा है मेरा कण-कण
मुझे कसौटी पर रखकर ये
समय परखता है क्यूँ क्षण-क्षण
अति सुन्दर.....,
हार्दिक आभार आपका
हटाएंभावपूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंNice post
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना,लोकेश जी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंअमित जी बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंत्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाने के लिये आभार
अभी मैं सीखने के प्रथम स्तर पर हूँ, तो गलतियां स्वाभाविक हैं, गुणीजनों के मार्गदर्शन में जरूर निखर जाऊंगा।
जाने किस पल हुआ पराया
जवाब देंहटाएंवो भी तो मेरा अपना था
रिश्ता था कच्चे धागों का
मगर टूटना इक सदमा था
वाह वाह बहुत उम्दा लोकेश जी ।
हार्दिक आभार आपका
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/09/86.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय
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