गुलों की राह के कांटे सभी खफ़ा मिले
मुहब्बत में वफ़ा की ऐसी न सज़ा मिले
अश्क़ तो उसकी यादों के करीब होते हैं
तिश्नगी ले चल जहां कोई मयकदा मिले
कहूँ कैसे मैं कि इस शहरे-वफ़ा में मुझको
जितने भी मिले लोग सभी बेवफ़ा मिले
राह में रोशनी की थे सभी हमराह मेरे
अंधेरे बढ़ गए तो साये लापता मिले
आओ तन्हाई में दो-चार बात तो कर लो
महफ़िल में तुम हमें मिले तो क्या मिले
क्या यही हासिले-वफ़ा है, परेशान हूँ मैं
कुछ तो आंसू, ख़लिश ओ' दर्द के सिवा मिले
आप पे हो किसी का हक़ तो वो नदीश का हो
और मुझको ही फ़क़त प्यार आपका मिले
वाह्ह...वाह्ह्ह्ह... बेहद शानदार लाज़वाब गज़ल लोकेश जी👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंवाह.. लाजवाब ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंअंधेरे आते हैं तो साये गुम हो जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंसुंदर ग़ज़ल ...
बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुंदर उम्दा लय बद्ध गजल।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंगज़ब की ग़ज़ल!!!!
जवाब देंहटाएंवाह शानदार गजल आदरणीय
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंअश्क़ तो उसकी यादों के करीब होते हैं
जवाब देंहटाएंतिश्नगी ले चल जहां कोई मयकदा मिले...
शानदार गजल। आपने तो हमें गजलों का कायल बना दिया है। बहुत-बहुत बधाई ।
बहुत सुन्दर...शानदार गजल
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
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