जो भी ख़लिश* थी दिल में अहसास हो गई है
दर्द से निस्बत* मुझे कुछ खास हो गई है
वज़ूद हर खुशी का ग़म से है इस जहां में
फिर ज़िन्दगी क्यूं इतनी उदास हो गई है
चराग़ जल रहा है यूँ मेरी मुहब्बत का
दिल है दीया, तमन्ना कपास हो गई है
शिकवा नहीं है कोई अब उनसे बेरुख़ी का
यादों में मुहब्बत की अरदास हो गई है
नदीश मुहब्बत में वो वक़्त आ गया है
तस्कीन* प्यास की भी अब प्यास हो गई है
ख़लिश- चुभन
निस्बत- लगाव
तस्कीन- संतुष्टि
अति सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंउमदा बेहतरीन गजल।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गजल 👌
जवाब देंहटाएंबेहद आभार आदरणीया
हटाएंबेहतरीन गजल , भावविभोर कर दिया
जवाब देंहटाएंबेहद आभार आदरणीया
हटाएंआपकी ये रचना भी आपकी सभी रचनाओं की तरह खास और अनूठी है
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंबहुत ही उम्दा ग़ज़ल , लाजवाब और बेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंउम्दा ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
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