ख़्वाब तेरा करता है वो जादू आँखों में
भर उठती है ख़्वाब की हर ख़ुश्बू आँखों में
क़त्ल बताओ कैसे फिर मेरा न होता
रक्खे थे उसने लम्बे चाकू आँखो में
मचल मचल जाती है ये दीदार को तेरे
अब हमको भी रहा नहीं काबू आँखों में
दर्द कोई जब दिल को मेरे छेड़े आकर
जोर से हँसते हैं मेरे आंसू आँखों में
ऐ नदीश जिसपे भी किया भरोसा तूने
चला गया है झोंक के वो बालू आँखों में
वाह्ह्ह...जानदार,शानदार गज़ल.लोकेश जी।👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार श्वेता जी
हटाएंसुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंलाजवाब शेर हैं इस ग़ज़ल के ... बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंबहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंलाजवाब शेरों से सजी शानदार गजल...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
वाह ¡¡
जवाब देंहटाएंउम्दा गजल ।
बेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंसादर