राह तकता ही रहा ख़्वाब सुनहरा कोई
नींद पे मेरी लगा कर गया पहरा कोई
ढूंढती है मेरे एहसास की तितली फिर से
तेरी आँखों में, मेरी याद का सहरा कोई
चीखती है मेरी नज़र से ख़ामोशी अब तो
आईना दे के मुझे ले गया चेहरा कोई
जो रख दिए हैं कदम, राहे-मोहब्बत में नदीश
फिर जहां लाख सदा दे, नहीं ठहरा कोई
चीखती है मेरी नज़र से ख़ामोशी अब तो
जवाब देंहटाएंआईना दे के मुझे ले गया चेहरा कोई
बहुत खूब :)
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआप की रचना को शुक्रवार 22 दिसम्बर 2017 को लिंक की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी जरूर आऊँगा
हटाएंबहुत बहुत आभार
नए नए सोपान चढ़ती लोकेश जी की ग़ज़ल सीधे दिलो दिमाग़ पर असर करती है।
जवाब देंहटाएंवाचक के लिए ऐसी ग़ज़ल बहुत प्रिय बन जाती है जो उससे सीधा संवाद स्थापित करे।
बधाई एवं शुभकामनाएं लोकेश जी।
बहुत बहुत आभार आदरणीय
हटाएंमन को छूते शब्दों व भावों से सजी रचना!
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया
हटाएंबहुत सुंदर....उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भावों से सजी बेहतरीन गज़ल .
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया
हटाएंलाजवाब प्रस्तुति ! हर शेर बेहतरीन ! बहुत खूब आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंखूबसूरत गज़ल..
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया
हटाएंआभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंलाजवाब गजल...
जवाब देंहटाएंवाआआह लाजवाब
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