याद के त्यौहार को तेरी कमी अच्छी लगी
बात तपते ज़िस्म को ये शबनमी अच्छी लगी
इसलिए हम लौट आए प्यास लेकर झील से
ख़ुश्क लब को नीम पलकों की नमी अच्छी लगी
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ज़िन्दगी भी कहाँ अपनी होकर मिली
गर ख़ुशी भी मिली, वो भी रोकर मिली
मसखरा बन हँसाया जिन्हें उम्र भर
मिला उनसे कुछ तो ये ठोकर मिली
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जो आँख से आंसू झरे, देख लेते
नज़र इक मुझे भी अरे देख लेते
हुए गुम क्यूँ आभासी रंगीनियों में
मुहब्बत बदन से परे देख लेते
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लोकेश नदीश