23 जनवरी 2020

झील

याद के त्यौहार को तेरी कमी अच्छी लगी
बात तपते ज़िस्म को ये शबनमी अच्छी लगी
इसलिए हम लौट आए प्यास लेकर झील से
ख़ुश्क लब को नीम पलकों की नमी अच्छी लगी

🔹 🔸 🔹 🔸 🔹 🔸 🔹

ज़िन्दगी भी कहाँ अपनी होकर मिली
गर ख़ुशी भी मिली, वो भी रोकर मिली
मसखरा बन हँसाया जिन्हें उम्र भर
मिला उनसे कुछ तो ये ठोकर मिली

🔸 🔹 🔸 🔹 🔸 🔹 🔸

जो आँख से आंसू झरे, देख लेते
नज़र इक मुझे भी अरे देख लेते
हुए गुम क्यूँ आभासी रंगीनियों में
मुहब्बत बदन से परे देख लेते

🔹 🔸 🔹 🔸 🔹 🔸 🔹

लोकेश नदीश


16 जनवरी 2020

इज़्तिराब देखता हूँ

मैं ज़ख़्म देखता हूँ न अज़ाब देखता हूँ
शिद्दत से मुहब्बत का इज़्तिराब देखता हूँ

लगती है ख़लिश दिल की उस वक्त मखमली सी
काँटों पे जब भी हँसता गुलाब देखता हूँ

दागों के अंधेरों में लगता है ज़र्द मुझको
जब साथ-साथ तेरे माहताब देखता हूँ

हर जोड़ घटाने में अपनों के अंक ही हैं
ज़ख़्मों का जब भी अपने हिसाब देखता हूँ

लगता है सच में मुझको शादाब दिल का सहरा
जब आईने में तेरा शबाब देखता हूँ

पलकों की रोशनी में हो जाती है इज़ाफ़त
आँखों में तेरी अपने जब ख़्वाब देखता हूँ

बस ऐ नदीश ये ही सांसों का फ़लसफ़ा है
पानी में जब भी उठता हुबाब देखता हूँ


04 जनवरी 2020

बहार का लुत्फ़

तन्हाई और तेरे इन्तिज़ार का लुत्फ़
पलकों पे गर्म अश्क़ों के करार का लुत्फ़

जिन आँखों में दफ़्न हुए गुलों के ख़्वाब
देखा ही नहीं फिर कभी बहार का लुत्फ़

पहली तारीख को ही जेब खाली हो गई
हम ले भी न पाए थे पगार का लुत्फ़

तेरी यादों की भीनी-भीनी पुरवाई में
इक कड़क चाय और सिगार का लुत्फ़

सुलगे-सुलगे नदीश, अरमान दिल में
अब तो आने लगा दिल से शरार का लुत्फ़

01 जनवरी 2020

रंग मुहब्बत का

ख़्वाब-ए-वफ़ा के ज़िस्म की खराश देखकर
इन आंसुओं की बिखरी हुई लाश देखकर
जब से चला हूँ मैं, कहीं ठहरा न एक पल
राहें  भी  रो  पड़ी  मेरी  तलाश  देखकर

🔹 🔸 🔹 🔸 🔹

सांसों की फिसलती हुई ये डोर थामकर
बेताब दिल की धड़कनों का शोर थामकर
करता हूँ इन्तज़ार इसी आस में कि तुम
आओगी कभी तीरगी* में भोर थामकर

🔹 🔸 🔹 🔸 🔹

ख़िल्वत* की पोशीदा* पीर भेजी है
तुमको ख़्वाबों की ताबीर* भेजी है
रंग  मुहब्बत का  थोड़ा सा भर देना
याद  की  बेरंग एक तस्वीर भेजी है

🔹 🔸 🔹 🔸 🔹

तीरगी- अंधेरा
ख़िल्वत- एकांत
पोशीदा- छिपी हुई, गुप्त
ताबीर- साकार
🔹 🔸 🔹 🔸 🔹