27 दिसंबर 2019

पंखुड़ी गुलाब की

अपनी आँखों से मुहब्बत का बयाना कर दे
नाम पे मेरे ये अनमोल खज़ाना कर दे
सिमटा रहता है किसी कोने में, बच्चे जैसा
मेरे एहसास को छू ले तू, सयाना कर दे

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रंग भरूँ शोखी में आज शबाबों का
रुख़ पे तेरे मल दूँ अर्क गुलाबों का
होंठों का आलिंगन कर यूँ होंठों से
हो जाये श्रृंगार हमारे ख़्वाबों का

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हैं सुर्ख़ होंठ जैसे पंखुड़ी गुलाब की
रुख़सार हैं जैसे कि झलक माहताब की
आँखों की चालबाजियां, ख़ुश्बू, बदन और रंग
सबसे जुदा है दास्तां तेरे शबाब की

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26 दिसंबर 2019

महकती रही ग़ज़ल

जब भी मेरे ज़ेहन में संवरती रही ग़ज़ल
तेरे ही ख़्यालों से महकती रही ग़ज़ल
झरते रहे हैं अश्क़ भी आँखों से दर्द की
और उंगलियाँ एहसास की लिखती रही ग़ज़ल

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आँख से चेहरा तेरा जाता नहीं कभी
दिल भूल के भी भूलने पाता नहीं कभी
हो धूप ग़म की या हो अश्क़ों की बारिशें
फूल तेरी यादों का मुरझाता नहीं कभी

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लब पे लबों की छुअन का एहसास रहने दो
बस एक पल तो खुद को मेरे पास रहने दो
ये तय है, तुम भी छोड़ के जाओगे एक दिन
लेकिन कहीं तो झूठा ही विश्वास रहने दो

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25 दिसंबर 2019

सुनहरा मौसम


बिखरी शाम सिसकता मौसम
बेकल, बेबस, तन्हा मौसम

तन्हाई को समझ रहा है
लेकर चाँद खिसकता मौसम

शब के आंसू चुनने आया
लेकर धूप सुनहरा मौसम

चाँद, चौदहवीं का हो छत पर
फिर देखो मचलता मौसम

ज़ुल्फ़ चाँदनी की बिखरा कर
बनकर रात महकता मौसम

खिलती कलियों की संगत में
फूलों सा ये खिलता मौसम

तेरी यादों की बूंदों से
ठंडा हुआ, दहकता मौसम

धूप-छाँव बनकर नदीश की
ग़ज़लों में है ढलता मौसम

08 दिसंबर 2019

कह सकते हो





यादों की इक छाँव में बैठा रहता हूँ 
अक्सर दर्द के गाँव में बैठा रहता हूँ
तुमने मुझसे हाल जहाँ पूछा था मेरा
मैं अब भी उस ठाँव में बैठा रहता हूँ

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तुमको गर हैरानी है, तो कह सकते हो
रिश्ता ये बेमानी है, तो कह सकते हो
मैं बाहर से जो भी हूँ वो ही अंदर से
ये मेरी नादानी है, तो कह सकते हो

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दूर मुझसे न रहो तुम

दूर मुझसे न रहो तुम यूँ बेखबर बन कर
क़रीब आओ चलो साथ हमसफ़र बन कर

जहाँ भी देखता हूँ, बस तुम्हारा चेहरा है
बसी हो आँख में तुम ही मेरी नज़र बन कर

सफ़र में तेज हुई धूप ग़मों की जब भी
तुम्हारी याद ने साया किया शजर* बन कर

महक रही है हरेक सांस में ख़ुश्बू तेरी
मेरे वज़ूद में तू है दिलो-जिगर बन कर

शब-ए-हयात* में उल्फ़त* की रोशनी लेकर
चले भी आओ ज़िन्दगी में तुम सहर बन कर

तुम्हारे नाम पर कर दे, ये ज़िन्दगी भी नदीश
रहो ता-उम्र मेरे यूँ ही तुम अगर बन कर

शजर- पेड़
शब-ए-हयात- जीवन की रात
उल्फ़त- प्रेम

02 दिसंबर 2019

परिन्दे ख़्वाब के


न जाने हाथ में कैसे हसीं खज़ाने लगे
खिज़ां के रोजो-शब भी आजकल सुहाने लगे

तेरी यादों की दुल्हन सज गई है यूँ दिल में
किसी बारात में खुशियों के शामियाने लगे

वफ़ा के ज़िक्र पे अंदाज़ ये रहा उनका
झुका के आँख वो पलकों से मुस्कुराने लगे

मुझे जो कहते थे कि तुम हो मेरे दिल का सुकूं
जो वक़्त बदला तो वो ही मुझे भुलाने लगे

थमी जो बारिशें अश्क़ों की ऐ नदीश कभी
परिन्दे ख़्वाब के आँखों में घर बसाने लगे