अपनी आँखों से मुहब्बत का बयाना कर दे
नाम पे मेरे ये अनमोल खज़ाना कर दे
सिमटा रहता है किसी कोने में, बच्चे जैसा
मेरे एहसास को छू ले तू, सयाना कर दे
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रंग भरूँ शोखी में आज शबाबों का
रुख़ पे तेरे मल दूँ अर्क गुलाबों का
होंठों का आलिंगन कर यूँ होंठों से
हो जाये श्रृंगार हमारे ख़्वाबों का
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हैं सुर्ख़ होंठ जैसे पंखुड़ी गुलाब की
रुख़सार हैं जैसे कि झलक माहताब की
आँखों की चालबाजियां, ख़ुश्बू, बदन और रंग
सबसे जुदा है दास्तां तेरे शबाब की
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