28 नवंबर 2019

फूल खिला के आया हूँ



अश्क़ों की हथेली पे
दामन के ख़्वाब सजा के आया हूँ
मैं अपनी वफ़ा के सूरज की
इक रात बना के आया हूँ

नादान हवाएं क्यों इसको
इक प्यार का मौसम समझ रहीं
मैं अहले-जहां के सीनों में
तूफान उठा के आया हूँ

आँखो के समंदर में शायद,
बेचैनी करवट लेती है
तेरी यादों के जंगल में,
इक बाग बिठा के आया हूँ

इतराती है खुशबू ख़ुद पे,
काँटों में गहमागहमी है
मैं सन्नाटों के सहरा में,
कुछ फूल खिला के आया हूँ

दुनिया के बंधन से तुझ तक,
बस चार कदम की दूरी थी
मत पूछ कि मैं तुझ तक
कितने सैलाब हटा के आया हूँ

ये अंधियारे कुछ देर के हैं,
अब तू नदीश मायूस न हो
मैं मुठ्ठी में इच्छाओं की
इक भोर छिपा के आया हूँ


20 नवंबर 2019

जब से बसे हो आँख में



जब से ऐ दर्द तुझसे *शनासाई बढ़ गई
चेहरे की मेरे तब से ही *रानाई बढ़ गई

आंसू बहुत ही खर्च हुये ख़ातिर-ए-वफ़ा
दुनिया में यारों कितनी मंहगाई बढ़ गई

लम्हें, महीने, घंटे, दिन, ये साल ओ' सदी
तन्हाईयों से आगे भी तन्हाई बढ़ गई

आने लगे हैं ख़्वाब में, अब रंग सौ नज़र
जब से बसे हो आँख में, बीनाई बढ़ गई

उड़ते रहे कपूर की तरह, ये सुख नदीश
पर्वत की तरह दर्द की, वो राई बढ़ गई

शनासाई- जान-पहचान, परिचय
रानाई- सौंदर्य, चमक
बीनाई- दृष्टि, विज़न


11 नवंबर 2019

सारे मनाज़िर लगे हैं फीके से





तेरी यादों ने कुरेदा है किस तरीके से
ज़ख़्म हर, दिल का महकने लगा सलीके से
तेरे ख़्याल में वो लुत्फ़ मुझे आने लगा 
नज़र को सारे मनाज़िर लगे हैं फीके से
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तेरी नजर में बुरा हूँ तो बुरा कह दे ना 
तू खुश है, या है मुझसे ख़फ़ा कह दे ना 
मेरी वफ़ा तुझे लगे वफ़ा, वफ़ा कह दे 
अगर लगे कि दगा है तो दगा कह दे ना
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