14 सितंबर 2019

गाँव में यादों के

नज़र को आस नज़र की है मयकशी के लिए
तड़प रहे हैं बहुत आज हम किसी के लिए

ये ग़म हयात के न जाने ख़त्म कब होंगे
मुंतज़िर है ये दिल इक लम्हें की खुशी के लिए

नहीं लगता है ये मुमकिन मुझे सफ़र तन्हा
हमसफ़र चाहिए मुझको भी ज़िन्दगी के लिए

गाँव में यादों के छाई है जो सावन की घटा
बरस ही जाए तो अच्छा है तिश्नगी के लिए

धूप रख के भी अंधेरों से वफ़ा की हमने
आज दिल भी जलाएंगे रोशनी के लिए

ढलें तो आँख से आंसू मगर ग़ज़ल की तरह
उम्र नदीश की गुजरे तो शायरी के लिए



02 सितंबर 2019

हर घड़ी

मुझको मिले हैं ज़ख्म जो बेहिस जहान से
फ़ुरसत में आज गिन रहा हूँ इत्मिनान से

आँगन तेरी आँखों का न हो जाये कहीं तर
डरता हूँ इसलिए मैं वफ़ा के बयान से

साहिल पे कुछ भी न था तेरी याद के सिवा
दरिया भी थम चुका था अश्क़ का उफ़ान से

नज़रों से मेरी नज़रें मिलाता है हर घड़ी
इकरार-ए-इश्क़ पर नहीं करता ज़ुबान से

कटती है ज़िन्दगी नदीश की कुछ इस तरह
हर लम्हां गुज़रता है नये इम्तिहान से