शब्दों की जुबानी लिखता हूँ
गीतों की कहानी लिखता हूँ
दर्दों के विस्तृत अम्बर में
भावों के पंछी उड़ते हैं
नाचे हैं शरारे उल्फ़त के
जब तार हृदय के जुड़ते हैं
हर सुबह से शबनम लेकर
फिर शाम सुहानी लिखता हूँ
जब दर्द से जुड़ता है रिश्ता
हर बात प्रीत से होती है
तब भावनाओं के धागे में
अश्क़ों को आँख पिरोती है
ऐसे ही अपनेपन को मैं
रिश्तों की निशानी लिखता हूँ
पानी में आँखों के भीतर
ये नमक ग़मों का घुलता है
जब नेह की होती है बारिश
तब मैल हृदय का धुलता है
दरिया के निर्मल जल सा मैं
आँखों का पानी लिखता हूँ