16 दिसंबर 2022

खुशी का ख्वाब भी


कभी देखा नहीं तुमने कि ज़ख़्मों से भरा हूँ मैं
फ़क़त जीने को इक पल के लिये हर पल मरा हूँ मैं

नज़रअंदाज़ मुझको इस तरह से दिल ये करता है
कि जैसे अपने भीतर शख़्स कोई दूसरा हूँ मैं

ख़ुशी का ख़्वाब भी कोई कभी आता नहीं मुझको
कसौटी पे तेरी ऐ ग़म बता कितना खरा हूँ मैं

ख़लल पड़ जाए न ख़्वाबों में तेरे नींद से मेरी
ख़यालों की किसी आहट से भी कितना डरा हूँ मैं

खिज़ां कहती है मुझसे ये बहारें अब न आएंगी
उम्मीदे वस्ल, वजह से तेरी अब भी हरा हूँ मैं

रखा जब सामने उनके ये दिल तो हँस दिये खुलकर
बता मुझको 'नदीश' अब तू ही ये, क्या मसखरा हूँ मैं

#लोकेशनदीश

08 जून 2021

अब अगर आओ तो




कितना मुश्किल ये अपनी ज़िन्दगी से मिलना है
अजनबी को जो किसी अजनबी से मिलना है

ऐ उम्मीद तूने तो देखा ज़रूर होगा उसे
मुझको एक बार किसी भी खुशी से मिलना है

दोस्तों के शहर में तो नहीं मिली मुझको
अब कहाँ जाऊँ, मुझे दोस्ती से मिलना है

हो चुका तंग फरिश्तों से रोज मिलते हुए
सच तो ये है कि मुझे आदमी से मिलना है

अब अगर आओ तो उसको भी साथ ले आना
नदीश मुझको तेरी बेबसी से मिलना है

लोकेश नदीश

23 जनवरी 2020

झील

याद के त्यौहार को तेरी कमी अच्छी लगी
बात तपते ज़िस्म को ये शबनमी अच्छी लगी
इसलिए हम लौट आए प्यास लेकर झील से
ख़ुश्क लब को नीम पलकों की नमी अच्छी लगी

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ज़िन्दगी भी कहाँ अपनी होकर मिली
गर ख़ुशी भी मिली, वो भी रोकर मिली
मसखरा बन हँसाया जिन्हें उम्र भर
मिला उनसे कुछ तो ये ठोकर मिली

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जो आँख से आंसू झरे, देख लेते
नज़र इक मुझे भी अरे देख लेते
हुए गुम क्यूँ आभासी रंगीनियों में
मुहब्बत बदन से परे देख लेते

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लोकेश नदीश


16 जनवरी 2020

इज़्तिराब देखता हूँ

मैं ज़ख़्म देखता हूँ न अज़ाब देखता हूँ
शिद्दत से मुहब्बत का इज़्तिराब देखता हूँ

लगती है ख़लिश दिल की उस वक्त मखमली सी
काँटों पे जब भी हँसता गुलाब देखता हूँ

दागों के अंधेरों में लगता है ज़र्द मुझको
जब साथ-साथ तेरे माहताब देखता हूँ

हर जोड़ घटाने में अपनों के अंक ही हैं
ज़ख़्मों का जब भी अपने हिसाब देखता हूँ

लगता है सच में मुझको शादाब दिल का सहरा
जब आईने में तेरा शबाब देखता हूँ

पलकों की रोशनी में हो जाती है इज़ाफ़त
आँखों में तेरी अपने जब ख़्वाब देखता हूँ

बस ऐ नदीश ये ही सांसों का फ़लसफ़ा है
पानी में जब भी उठता हुबाब देखता हूँ


04 जनवरी 2020

बहार का लुत्फ़

तन्हाई और तेरे इन्तिज़ार का लुत्फ़
पलकों पे गर्म अश्क़ों के करार का लुत्फ़

जिन आँखों में दफ़्न हुए गुलों के ख़्वाब
देखा ही नहीं फिर कभी बहार का लुत्फ़

पहली तारीख को ही जेब खाली हो गई
हम ले भी न पाए थे पगार का लुत्फ़

तेरी यादों की भीनी-भीनी पुरवाई में
इक कड़क चाय और सिगार का लुत्फ़

सुलगे-सुलगे नदीश, अरमान दिल में
अब तो आने लगा दिल से शरार का लुत्फ़

01 जनवरी 2020

रंग मुहब्बत का

ख़्वाब-ए-वफ़ा के ज़िस्म की खराश देखकर
इन आंसुओं की बिखरी हुई लाश देखकर
जब से चला हूँ मैं, कहीं ठहरा न एक पल
राहें  भी  रो  पड़ी  मेरी  तलाश  देखकर

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सांसों की फिसलती हुई ये डोर थामकर
बेताब दिल की धड़कनों का शोर थामकर
करता हूँ इन्तज़ार इसी आस में कि तुम
आओगी कभी तीरगी* में भोर थामकर

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ख़िल्वत* की पोशीदा* पीर भेजी है
तुमको ख़्वाबों की ताबीर* भेजी है
रंग  मुहब्बत का  थोड़ा सा भर देना
याद  की  बेरंग एक तस्वीर भेजी है

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तीरगी- अंधेरा
ख़िल्वत- एकांत
पोशीदा- छिपी हुई, गुप्त
ताबीर- साकार
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27 दिसंबर 2019

पंखुड़ी गुलाब की

अपनी आँखों से मुहब्बत का बयाना कर दे
नाम पे मेरे ये अनमोल खज़ाना कर दे
सिमटा रहता है किसी कोने में, बच्चे जैसा
मेरे एहसास को छू ले तू, सयाना कर दे

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रंग भरूँ शोखी में आज शबाबों का
रुख़ पे तेरे मल दूँ अर्क गुलाबों का
होंठों का आलिंगन कर यूँ होंठों से
हो जाये श्रृंगार हमारे ख़्वाबों का

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हैं सुर्ख़ होंठ जैसे पंखुड़ी गुलाब की
रुख़सार हैं जैसे कि झलक माहताब की
आँखों की चालबाजियां, ख़ुश्बू, बदन और रंग
सबसे जुदा है दास्तां तेरे शबाब की

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